माँ लक्ष्मी की कहानी - एक सच्ची कहानी
एक ब्राह्मण था, उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी मां लक्ष्मी की भक्त थी वो प्रतिदिन मां की पूजा करती थी।
मां लक्ष्मी की कृपा से ब्राह्मण के घर में कन्या ने जन्म लिया, ब्राह्मण ने कन्या का नाम सावी राखा, सावी बड़ी हो कर हर रोज मां लक्ष्मी की पूजा करने लगी और पीपल के पेड़ पर दीपक जलाने लगी।
एक दिन पेड में से लक्ष्मी जी ने बोला कि सावी मुझे सहेली बना ले। सावी घर जा कर मां से बोली की मां पीपल में लक्ष्मी जी बोलती है कि सावी मुझे सहेली बना ले, मां ने कहा कि कोई बात नहीं सहेली बन जाना।
अगले दिन सावी और लक्ष्मी जी में दोस्ती हो गई।
कुछ दिन बाद लक्ष्मी जी ने सावी से कहा
"सहेली आज तेरा मेरे घर खाना है।
सावी ने हां कर दिया।
अगले दिन लक्ष्मी जी सोने का रथ ले सावी को लेने आई। उसको छप्पन पकवान खिलाए।
अब सावी ने मां लक्ष्मी जी को अपने घर खाने का निमंत्रण दिया। लक्ष्मी जी ने खुशी खुशी हां कर दिया।
अगले दिन सावी टूटा सा रथ ले कर मां लक्ष्मी को लेने पंहुची।
द्वार पर जाते ही रथ सोने का हो गया। अब सावी दाल रोटी देने में शर्मा रही थी, मां लक्ष्मी समझ गई उन्हें कहा अंदर जा कर देख, सावी ने अंदर जा कर देखा तो छप्पन भोग बने राखे। सावी ने खुशी खुशी मां का भोग लगाया।
अब तो सावी ने मां लक्ष्मी से कहा "लक्ष्मी जी अब मैं आपको जाने नहीं दूंगी, अब आप हमारे घर ही रहना।"
लक्ष्मी जी ने कहा "सावी ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मैं तो एक घर रुकी ही नहीं हूं, मेरा काम तो घर घर जाना है क्योंकि हर अच्छे और बुरे काम में मेरी जरूरत होती है"।
सावी समझ गई और लक्ष्मी जी से बोली - "तो ठीक है, लक्ष्मी जी के दिनों में आप सबके घर हो आना पर रात को मेरे घर ही आना"। लक्ष्मी जी ने हां कर दिया।
जैसे मां लक्ष्मी जी ने सावी को आशीर्वाद दिया ऐसे सबको देना
सबको मिलकर बोलना चाहिए -
लक्ष्मी महारानी की जय।
Ganesh ji maharaj ki kahani - A TRUE STORY
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.