गणेश जी महाराज की कहानी - एक सच्ची कहानी
एक बुड़िया अम्मा थी, वो रोज गणेश जी को दूध से नहला कर खीर का भोग लगाती थी। एक दिन अम्मा अपनी बहू से बोली, "बहू, मैं कुछ दिन के लिए पीहर जा रही हूं, तू मेरे गणेश जी का ख्याल रखना और उन्हें रोज दूध से नहला कर खीर का भोग लगाना"। बहू ने हां तो कर दिया पर बहू को अम्मा का हर दिन गणेश जी की पूजा करना अच्छा नहीं लगता था। बहू हर दिन दूध तो खुद ले जाती और जो बरतन में बचाता उससे गणेश जी को नहला देते।
एक दिन गणेश जी अम्मा की बहू को दख कर दिया है।
बहू को गणेश जी पर गुस्सा आ गया और उन्हें पीपल की जड़ में बिठा दिया।
उस दिन से अम्मा के घर में गरीबी आ गई।
अम्मा का बेटा बोला, "मैं तो अपनी मां को ले कर आता हूं।" बेटा भागा हुआ मां को लाने गया।
अम्मा ने पूछा, "मेरे गणेश जी कहाँ हैं?"
अम्मा भागी भागी गणेश जी के पास गई या उनसे कहा - "हे गणेश जी महाराज, आप अपने घर वापस चलो" गणेश जी बोले, तेरी बहू ने मुझे झूठे टुकड़े का भोग लगाया, बचे हुए दूध से मुझे नहलाया मैं तो वापस कभी नहीं जाऊंगा ". अम्मा बोली," अगर आप नहीं चलेंगे तो मैं अपने प्राण यही पर त्याग दूंगी"।
गणेश जी ने कहा "ये तो बुरी बात होगी, एक परोपकारी अम्मा के प्राण नहीं लेने चाहिए"।
आगे आगे गणेश जी आए, पीछे पीछे अम्मा आई। बहू ने गणेश जी शमा मांगी।
अम्मा के घर में पहले से अधिक धन और सम्मान हो गया या अम्मा इस लोक का सुख भोग कर मोक्ष को प्राप्त हुई।
जैसा गणेश जी ने अम्मा और उसके परिवार को दिया ऐसा गणेश जी सबको देना।
सबको मिलकर एक साथ 3 बार बोलना चाहिए
-"जय गणेश काटो कलेश"
सब बोलो गणेश महाराज की जय।
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