मस्तिष्क पर चक्र - पंचतंत्र की कहानी

 मस्तिष्क पर चक्र - पंचतंत्र की कहानी



बहुत समय पहले कि बात है सुरई शहर में चार ब्राह्मण रहते थे। सभी के बीच अच्छी दोस्ती थी, लेकिन चारों मित्र निर्धन होने की वजह से दुखी रहते थे। गरीबी की वजह से सभी लोगों से अपमान सहने की वजह से चारों ब्राह्मण शहर से चले जाते हैं।

सभी दोस्त आपस में बात करने लगे कि पैसे न होने की वजह से उनके अपनों ने उन्हें छोड़ दिया। घर में ही बेगाने हो जाते हैं। इस बात पर चर्चा करते हुए उन सबने दूसरे राज्य जाने और वहां भी बात न बनने पर विदेश जाने का फैसला लिया। यह निर्णय लेने के बाद सभी यात्रा पर निकल पड़े। चलते-चलते उन्हें बहुत प्यास लगने लगी, तो वो पास ही क्षिप्रा नदी में जाकर पानी पीने लगे।

पानी पीने के बाद सभी नदी में नहाए और आगे की ओर निकल पड़े। कुछ दूर चलने पर उन्हें एक जटाधारी योगी दिखा। ब्राह्मणों को यूं यात्रा करते हुए देखकर योगी ने उन्हें अपने आश्रम आकर थोड़ी देर आराम करने और कुछ खाने का न्योता दिया। ब्राह्मण खुश होकर योगी के आश्रम चले गए। वहां उनके आराम करने के बाद योगी ने ब्राह्मणों से उनकी यात्रा का कारण पूछा। ब्राह्मणों ने अपनी पूरी कहानी सुना दी और कहा कि योगी महाराज गरीबों का कोई नहीं होता। इसलिए, वो तीनों धन कमाकर बलवान बनना चाहते हैं।

उनका निश्चय देखकर योगी भैरवनाथ बहुत खुश हुए। तब ब्राह्मणों ने उनसे धन कमाने का कोई रास्ता दिखाने का आग्रह किया। योगी के पास तप का बल था, जिसका इस्तेमाल करके उसने एक दिव्य दीपक उत्पन्न किया। भैरवनाथ ने उन ब्राह्मणों को हाथ में दीपक लेकर हिमालय पर्वत की ओर बढ़ने को कहा। योगी ने बताया, “हिमालय की तरफ जाते समय यह दीपक जिस जगह गिरेगा, तुम वहां खुदाई करना। वहां तुम्हें बहुत धन मिलेगा। खुदाई के बाद, जो भी मिले उसे लेकर घर लौट जाना।”

हाथ में दीपक लेकर सभी ब्राह्मण योगी के कहे अनुसार हिमालय की ओर निकल पड़े। बहुत दूर निकलने के बाद एक जगह दीपक गिर गया। वहां ब्राह्मणों ने खुदाई शुरू की। खोदते-खोदते उन्हें उस जमीन में तांबे की खान मिली। तांबे की खान देखकर ब्राह्मण बहुत खुश हुए। तभी एक ब्राह्मण ने कहा, “हमारी गरीबी मिटाने के लिए यह तांबे की खान काफी नहीं है। अगर यहां तांबा है, तो आगे और बहुत कीमती खजाना होगा।” उस ब्राह्मण की बात सुनकर उसके साथ दो ब्राह्मण आगे बढ़ गए और एक ब्राह्मण उस खान से तांबा लेकर अपने घर लौट गया।

आगे चलते-चलते फिर एक जगह दीपक गिर गया। वहां खुदाई करने पर चांदी की खान मिली। यह खान देखकर तीनों ब्राह्मण खुश हुए। फिर एक ब्राह्मण तेजी से उस खान से चांदी निकालने लगा, लेकिन तभी एक ब्राह्मण ने कहा, “आगे और कोई कीमती खान हो सकती है।” यह सोचकर दो ब्राह्मण आगे निकल गए और एक ब्राह्मण उस चांदी की खान को लेकर घर लौट गया। फिर आगे चलते-चलते एक जगह दीपक गिरा, जहां सोने की खान थी।

सोने की खान देखने के बाद भी एक ब्राह्मण के मन का लोभ खत्म नहीं हुआ। उसने दूसरे ब्राह्मण से आगे की ओर चलने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। गुस्से में लोभी ब्राह्मण ने कहा, “पहले तांबे की खान मिली, फिर चांदी की और अब सोने की। सोचो आगे और कितना कीमती खजाना होगा।” उस लोभी ब्राह्मण की बात को अनसुना करते हुए उस ब्राह्मण ने सोने की खान को निकाला और कहां, “तुम्हें आगे जाना है, तो जाओ, लेकिन मेरे लिए यह काफी है।” इतना कहकर, वो सोना लेकर घर चला गया।

तभी वो लोभी ब्राह्मण दीपक हाथ में लेकर आगे चलने लगा। आगे का रास्ता बहुत कांटों भरा था। कांटों भरा रास्ता खत्म होने के बाद बर्फीला रास्ता शुरू हो गया। कांटों से शरीर खून से लथपथ हो गया और बर्फ की वजह से वह ठंड से ठिठुरने लगा। फिर भी अपनी जान को दांव पर डालकर वह आगे बढ़ता रहा। बहुत दूर चलने के बाद उस लोभी ब्राह्मण को एक युवक दिखा, जिसके मस्तिष्क पर चक्र घूम रहा था। युवक के सिर पर चक्र को घूमता देख, उस लोभी ब्राह्मण को बढ़ी हैरानी हुई।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.