प्रभु श्रीकृण के सबसे बड़े भक्त
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावनो को भगवान श्रीकृष्ण ने समझ लिया।
अर्जुन्-का अहंकार तोड़ने के लिए एक दिन
भगवान उन्हें अपने साथ घुमाने ले गए। भ्रमण
करते-सेमय उन दोनों की मुलाकात एक गरीब
ब्राह्मण से हुई। उस ब्राह्म॑ण-का व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी-घोस खा रहा था औस उसकी कमर से एक तलवार लटक रही थी।
अर्जुन हैरान हो गए। उन्होंने उस ब्राह्मण से पूछा, “आप तो
अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा न हो, इसलिए सूखी घास
खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह साधन तलवार आपके साथ क्यों है ?” यह प्रश्न सुन कर ब्राह्मण ने जवाब दिया, “मैं कुछ लोगों को दंड देना चाहता हूं।'
अर्जुन ने उत्सुक होकर फिर प्रश्न किया, 'हे
महामना ! आपके शत्रु कौन हैं ?' ब्राह्मण ने उत्तर
दिया, "मैं चार लोगों को ढूंढ़ रहा हूं, जिन्होंने
मेरे भगवान को परेशान किया है, ताकि उन्हें उनके कर्मों का दंड दे सकु। अर्जुन ने फिर पूछा, कौन हैं वो चार लोग?सबसे पेहले तो मुझे नारद मुनि की तलश है। नारद मेरे प्रभु को विश्राम नहीं कर्ने देते, हमेशा भजन - कीर्तन कर्के प्रभु को जगाये रख्ते है l उसके बाद मैं द्रौपदी से भी बहुत गुस्सा हूं, उसके मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकार लिया जब वह भोजन करने बैठे थे।
उन्हें उसी समय भोजन छोड़कर उठना पड़ा,
ताकि पाण्डवों को महर्षि दुवासा ऋषि के शाप
से बचा सकें। इतना ही नहीं, द्रौपदी ने मेरे आराध्य
को जूठा भोजन खिला दिया।'
अर्जुन ने पूछा, “आपका तीसरा शत्रु कौन है?' ब्राह्मण ने उत्तर दिया, हृदयहीन प्रह्लाद। उस धृष्ट के कारण मेरे भगवान को गरम तेल के कड़ाहे में प्रवेश करना पड़ा, हाथी के पैरों तले कुचला जाना पड़ा और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश होन्l पड़ा।
और, मेरा चौथा शत्रु है अर्जुन-- उसका दुस्साहस तो देखिए, उसने तो मेरे भगवान को अपना सारथी ही बना डाला l उसे भगवान की असुविधा का थोड़ा भी ध्यान नहीं
रहा। इससे कितना कष्ट हुआ होगा मेरे आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को ।
यह सब बताते-बताते उस गरीब-ब्राह्मण की आंखों से आंसू बहने लगे। उस गरीब ब्राह्मण की ऐसी निस्वार्थ भक्ति देख कर अर्जुन का सारा अहंकार पानी की तरह बह गया। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, “मेरी
आंखें खुल गईं प्रभु, इस जगत में नजाने आपके
कैसे-कैसे अद्भुत भक्त हैं। मैं तो उनके आगे कुछ भी नहीं हूं।
यह सुन भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराने लगे।