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प्रार्थना करने वाले हाथ - " THE PRAYING HANDS"
लेमन केक
लेमन केक
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होटल ताज के रेस्टोरेंट में बड़े बड़े लोग अपनी टेबलों पर बैठे थे, होटल की ख़ामोशी में प्लेटों और चम्मच काँटों की धीमी धीमी सी आवाज़ आ रही थी, जैज़ म्यूजिक से माहौल और भी खुशनुमा हो रहा था. अचानक रेस्टोरेंट का दरवाज़ा खुला और 50 -55 साल की रमा रेस्टोरेंट में आयी, उसने साधारण सा सलवार सूट पहना हुआ था और पैरों में रबर की चप्पल पहन रखी थी, उसके हाथ में एक छोटा सा सिक्को का पाउच था.
उस समय हर कोई उससे घृणा की नज़र से देख रहा था. जैसे ही उस रमा ने दो कदम आगे बढ़ाये बराबर की टेबल पर बैठे एक आदमी ने कहा " ताज का स्टेटस भी कितना डाउन हो गया है कोई भी आ जाता है, मुझे तो बदबू आ रही है लगता है ये कई दिन से नहीं नहीं है। इस तरह और भी लोग आपस में कानाफूसी करने लगे। यह सब देख कर , एक वेट्रेस उसके पास आयी, और कहाँ " हाउ कैन ऑय हेल्प यू?", उस रमा ने दबी आवाज़ में कहा की मुझे एक लेमन केक लेना है। वेट्रेस ने हँसते हुए कहा " मैडम मुझे नहीं लगता की आपके पास हमारे रेस्टोरेंट का लेमन केक लेने के लिए पैसे होंगें ? बेहतर होगा की आप बाहर किसी छोटी सी दुकान से अपना केक लेले क्यूंकि आपकी वजह से हमारे गेस्ट परेशान हो रहे है। "
फिर भी उस रमा के कहने पर वो उसे कन्फेक्शनरी सेक्शन में ले गयी। कन्फेक्शनरी सेक्शन में जाते ही उस रमा की नज़रें अपने लेमन केक को ढूँढने लगी, और जैसे ही उसने लेमन केक देखा, उसकी आखों में चमक आ गयी। उसने वेट्रेस से पूछा, कि क्या वह लेमन केक का एक स्लाइस खरीद सकती है, क्यूंकि उसके पास पूरे केक के लिए पैसे नहीं है।
वेट्रेस ने गुस्से से मना करते हुए कहा की मैंने आपसे पहले ही कहा था, कि आपके पास हमारा केक खरीदना के पैसे नहीं होंगे, रमा ने वेट्रेस से बहुत रिक्वेस्ट किया पर वेट्रेस ने गार्ड्स को बुला लिया और उसे बाहर जाने के लिए कहने लगी, उस समय रेस्टोरेंट में बैठे हर इंसान के चेहरे पर घृणा और कठोरता की भावना साफ़ दिख रही थी, ऐसा लग रहा था की पढ़े लिखे लोगों की अज्ञानता के विचार रेस्टोरेंट के जाज म्यूजिक के साथ गाना गा रहे हो, और बेबस रमा की लाचारी पर हँस रहे हों। रमा अपना सा मुँह ले कर बाहर जाने लगी उसकी आखों के आंसुओं की भाषा कोई नहीं समझ प् रहा था।
होटल के कार्नर की टेबल पर कर्नल अपनी वाइफ के साथ बैठ कर ये सब देख रहे थे। रमा को जाते देख कर, उन्होंने उसे रोका और अपने पास बुलाया, कर्नल की वाइफ ने रमा को अपने पास बिठाया और पानी पिलाया , अब रमा अपनी भावनाओं को रोक नहीं पायी और रोने लगी, उसने भावुकता के साथ कर्नल से कहा, " मेरे पति का कपड़ों का बहुत बड़ा बिज़नेस था , हम अपने परिवार के साथ यहाँ अक्सर डिनर करने आते थे, कुछ महीने पहले मेरे पति के देहांत हो गया और हमारा काम पूरी तरह से क़र्ज़ में डूब गया, हमारा घर भी नहीं रहा, मेरे ससुर इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए और पिछले महीना वो भी चल बसे। अब मेरे परिवार में मैं , मेरे दो बच्चे और मेरी सास रहते है। मेरी बेटी ८ साल की है और उसे लास्ट स्टेज का कैंसर है, आज उसका बर्थडे है और वो अपने पापा को बहुत याद कर रही थी इसलिए मैं उसके पापा की तरह उसके लिए उसका फेवरेट लेमन केक ले जाना चाहती थी पर शायद मैं उसे ये आखिरी ख़ुशी भी नहीं दे पाऊँगी, उसकी बात सुनकर कर्नल और उसकी वाइफ रोने लगे, उन्होंने उसी वेट्रेस को बुलाया और उसके लिए पूरा केक पैक करने के लिए कहा।
रमा ने झिझकते हुए मना किया , पर कर्नल की वाइफ ने कहा, " पिछले साल हमने अपने २० साल के बेटे को एक कार एक्सीडेंट में खो दिया , आज उसका बर्थडे है और हम उसका बर्थडे हर साल यही पर सेलिब्रेट करते थे। उसका भी फेवरेट केक लेमन केक था, पर उसके बिना उसका जन्मदिन मानाने में अधूरा लग रहा था। अब उसका जन्मदिन आपकी बेटी की खुशियों के साथ पूरा हो जायेगा। " रमा निशब्द थी, वो उनको कुछ नहीं बोल पाई। उन तीनो की ख़ामोशी ने हज़ारों शब्द बोल दिए इतने में वेट्रेस लेमन केक पैक करके ले आयी। रमा ने केक ले लिया, और करनाल और उसकी वाइफ को अपने घर आने के लिया कहा, वो दोनों उसके साथ जाने के लिया तैयार हो गए, और ख़ुशी ख़ुशी उस रेस्टोरेंट से बाहर निकलने लगे।
रमा ने जाते वक़्त पीछे मुड़कर हर शख्स को देखा, अब उनकी आखों में अज्ञानता की घृणा नहीं, बल्कि एक शर्मिंदगी थी....
सच्चे प्यार की कहानी
जीवन का अर्थ
जीवन का अर्थ
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एक बार गिद्धों का झुण्ड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँच. वह टापू समुद्र के बीचों-बीच स्थित था. वहाँ ढेर सारी मछलियाँ, मेंढक और समुद्री जीव थे. इस प्रकार गिद्धों को वहाँ खाने-पीने को कोई कमी नहीं थी. सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था. गिद्ध वहाँ बहुत ख़ुश थे. इतना आराम का जीवन उन्होंने पहले देखा नहीं था.
उस झुण्ड में अधिकांश गिद्ध युवा थे. वे सोचने लगे कि अब जीवन भर इसी टापू पर रहना है. यहाँ से कहीं नहीं जाना, क्योंकि इतना आरामदायक जीवन कहीं नहीं मिलेगा.
लेकिन उन सबके बीच में एक बूढ़ा गिद्ध भी था. वह जब युवा गिद्धों को देखता, तो चिंता में पड़ जाता. वह सोचता कि यहाँ के आरामदायक जीवन का इन युवा गिद्धों पर क्या असर पड़ेगा? क्या ये वास्तविक जीवन का अर्थ समझ पाएंगे? यहाँ इनके सामने किसी प्रकार की चुनौती नहीं है. ऐसे में जब कभी मुसीबत इनके सामने आ गई, तो ये कैसे उसका मुकाबला करेंगे?
बहुत सोचने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई. अपनी चिंता जताते हुए वह सबसे बोला, “इस टापू में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए हैं. मेरे विचार से अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए, जहाँ से हम आये हैं. यहाँ हम बिना चुनौती का जीवन जी रहे हैं. ऐसे में हम कभी भी मुसीबत के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे.”
युवा गिद्धों ने उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर दी. उन्हें लगा कि बढ़ती उम्र के असर से बूढ़ा गिद्ध सठिया गया है. इसलिए ऐसी बेकार की बातें कर रहा है. उन्होंने टापू की आराम की ज़िन्दगी छोड़कर जाने से मना कर दिया.
बूढ़े गिद्ध ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “तुम सब ध्यान नहीं दे रहे कि आराम के आदी हो जाने के कारण तुम लोग उड़ना तक भूल चुके हो. ऐसे में मुसीबात आई, तो क्या करोगे? मेरे बात मानो, मेरे साथ चलो.”
लेकिन किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी. बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहाँ से चला गया. कुछ महीने बीते. एक दिन बूढ़े गिद्ध ने टापू पर गये गिद्धों की ख़ोज-खबर लेने की सोची और उड़ता-उड़ता उस टापू पर पहुँचा.
टापू पर जाकर उसने देखा कि वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था. जहाँ देखो, वहाँ गिद्धों की लाशें पड़ी थी. कई गिद्ध लहू-लुहान और घायल पड़े हुए थे. हैरान बूढ़े गिद्ध ने एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया? तुम लोगों की ये हालात कैसे हुई?”
घायल गिद्ध ने बताया, “आपके जाने के बाद हम इस टापू पर बड़े मज़े की ज़िन्दगी जी रहे थे. लेकिन एक दिन एक जहाज़ यहाँ आया. उस जहाज से यहाँ चीते छोड़ दिए गए. शुरू में तो उन चीतों ने हमें कुछ नहीं किया. लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें आभास हुआ कि हम उड़ना भूल चुके हैं. हमारे पंजे और नाखून इतने कमज़ोर पड़ गए हैं कि हम तो किसी पर हमला भी नहीं कर सकते और न ही अपना बचाव कर सकते हैं, तो उन्होंने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया. उनके ही कारण हमारा ये हाल है. शायद आपकी बात न मानने का ये फल हमें मिला है.”
सीख :
अक्सर कम्फर्ट जोन में जाने के बाद उससे बाहर आ पाना मुश्किल होता है. ऐसे में चुनौतियाँ आने पर उसका सामना कर पाना आसान नहीं होता. इसलिए कभी भी कम्फर्ट ज़ोन में जाकर ख़ुश न हो जाएँ. ख़ुद को हमेशा चुनौती देते रहे और मुसीबत के लिए तैयार रहें. जब तब आप चुनौती का सामना करते रहेंगे, आगे बढ़ते रहेंगे.
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